भीण्डेश्वर महादेव मन्दिर में सावन आंगी, दर्शन के लिए पहुंच रहे हैं सैकड़ों श्रद्धालु

भीण्डेश्वर महादेव मन्दिर में सावन आंगी, दर्शन के लिए पहुंच रहे हैं सैकड़ों श्रद्धालु

मेवाड़ का एकमात्र शिवालय, सावन में 30 दिन तक महादेव के विभिन्न रूपों का होता हैं श्रृंगार

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Bhinder@VatanjayMedia

मेवाड़ का एकमात्र शिवालय जहां सावन माह में 30 दिनों तक महादेव का प्रतिदिन रूप बदला जाता है। यह परम्परा पिछले सैकड़ों वर्षों से चली आ रही है। भीण्डर के प्रसिद्ध भीण्डेश्वर महादेव मन्दिर में महादेव की विशेष आंगी सावन माह की तृतीया से शुरू हो जाती हैं और भाद्रपद पंचमी तक जारी रहती है। इस दौरान प्रतिदिन महादेव के विभिन्न रूपों का श्रृंगार किया जाता हैं और दर्शन करने के लिए सैकड़ों श्रद्धालु पहुंचते है।

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तिथि, वार और त्यौहार के अनुसार होता हैं श्रृंगारभीण्डेश्वर महादेव मन्दिर ट्रस्ट के अनुसार प्रति वर्ष सावन माह में महादेव की विशेष अंग रचना आंगी की जाती है। जो प्रतिदिन अलग-अलग रूप में श्रृंगारित होती है। इस दौरान मन्दिर परिसर में मेले जैसा माहौल रहता है। जिसमें भीण्डर एवं आसपास क्षेत्रों के सैकड़ों भक्तगण दर्शन करने आते है।

विशेष आंगी में सप्ताह के प्रत्येक दिन के अनुसार के अलावा तिथि, त्यौहार के अनुसार भी महादेव के अलग-अलग रूपों का श्रृंगार होता है। जिसमें सोमवार से रविवार तक अलग-अलग रंग सहित महादेव की विभिन्न रूपों का श्रृंगार होता है। ये आंगी दर्शन प्रतिदिन शाम 5 बजे से खुलते हैं और रात 10 बजे की आरती तक खुले रहते है।

भिण्डी गाय से नामकरण भीण्डेश्वर

500 वर्ष पहले जुनी भीण्डर के नाम से वर्तमान शहर से करीब 2 किलोमीटर दूर पश्चिम में बीजासर माता की पहाड़ियों पर बसा हुआ था। वहां राठौड़ राजपुतों का शासन हुआ करता था। उस समय जुनी भीण्डर के निवासियों के मवेशी इस स्थान पर भंयकर जंगल एवं नदी होने के कारण चरने के लिए आते थे।

मवेशियों में एक गाय मुड़े हुये सींग वाली थी जिसे भिण्डी नाम से पुकारा जाता था। यह भिण्डी गाय एक स्थान पर आकर रूकती और उसके स्तन से दुध की धारा स्वत ही फूट पड़ती थी। गाय के मालिक जब सांयकाल दुध निकालना चाहता था तो उसे दुध ही नहीं मिलता था। एक दिन गाय का मालिक दोपहर में गाय के पीछे-पीछे निगरानी के लिये गया तो देखा झाड़ियों के पीछे गाय की स्वत दूध धारा निकल रही है। उस स्थान की खुदाई की तो वहां शिवलिंग निकला। जिसकी स्थापना कर यह स्थान भीण्ेडश्वर महादेव के नाम से जाना जाने लगा।

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