भीण्डर में सुल्तान शहीद के उर्स में देश-विदेश से पहुंचे जायरीन

भीण्डर में सुल्तान शहीद के उर्स में देश-विदेश से पहुंचे जायरीन

भीण्डर में सुल्तान शहीद की 118 वें उर्स पर दरगार पर हुए विशेष आयोजन

Bhinder@VatanjayMedia

दाउदी बोहरा समुदाय भीण्डर के तत्वावधान में बुधवार से शुरू हुए दो दिवसीय सुल्तान शहीद के 118 वां उर्स संपन्न हुआ। जिसमें गुरूवार को मुख्य आयोजन के दौरान कुवैत, दुबई, मुम्बई, मेवाड़-मालवा क्षेत्र से हजारों जायरीन उर्स में भाग लेने के लिए पहुंचे। उर्स को लेकर स्थानीय बोहरा समाज ने सभी प्रकार की व्यवस्था को संभाला।

वहीं वल्लभनगर विधायक उदयलाल डांगी ने दरगाह पर पहुंच करके बोहरा समाज को उर्स की बधाई दी। उल्लेखनीय हैं कि करीब 400 वर्ष पहले लूट के इरादे से सुल्तान अली बोहरा की हत्या कर दी थी जिनकी दरगाद बनाई गई थी। उसके बाद से भीण्डर बोहरा समुदाय द्वारा उर्स का आयोजन किया जाने लगा। जिसमें विभिन्न जगहों से दाउदी बोहर समाज के समाजजन यहां भाग लेने के लिए पहुंचते है।

विदेश से लेकर मेवाड़-मालवा के पहुंचते हैं हजारों जायरीन

भीण्डर में गुरूवार को बोहरा समुदाय के सुल्तान शहीद के उर्स में कुवैत, दुबई, मुम्बई, मेवाड़, वांगड़, मालवा, मारवाड़ आदि स्थानों से हजारों बोहरा समुदाय के जायरीन इसमें शामिल हुए। बोहरा समाज के आयोजनकर्ता ने बताया कि उर्स में विभिन्न स्थानों से आने वाले जायरीन सुल्तान शहीद की दरगाह पर चादर व सलाम दुआ की।

वहीं हजारों जायरीनों की रहने व खान-पान की व्यवस्था भीण्डर दाउदी बोहरा समुदाय ने संभाली। सुल्तान शहीद के उर्स में भीण्डर के अलावा उदयपुर, सागवाड़ा, गलियाकोट, बासंवाड़ा, मुम्बई, डूंगरपुर, सलुम्बर, चितोड़गढ़, पारसोला, कानोड़, बड़ीसादड़ी, नीमच, खेरोदा, बरहानपुर, रामपुरा, समेत गुजरात, मध्यप्रदेश, आदि से हजारों की संख्या में जायरीन पहुंचे।

लूट के इरादे से हुई हत्या, शहीद कहलाएं, होती हैं मन्नतें पूरी

बोहरा समुदाय के हिजरी सन् 1168 के दौरान भीण्डर निवासी सुल्तान अली बोहरा कुण्डई क्षेत्र में फेरी करने जाते थे। इस दौरान लोगों की जरूरतमंद वस्तुएं भीण्डर से ले जाकर उसे रूपये या अनाज के एवज में बेचते थे। इस दौरान कुण्डई ठिकाने के ठाकुर पृथ्वी सिंह शक्तावत की पत्नी के सोने का बाजु टूट गया जिस पर उन्होनें सुल्तान जी बोहरा को भीण्डर से ठीक करवा कर लाने के लिए दिया।

ठिकाने के कामगार ने ये देख लिया और सोने का बाजु लूटने का इरादा बना लिया। लेकिन सुल्तान जी ने ठकूराईन को वह बाज कुछ ही देर में पुनः लौटा कर कहां कि इसकी मरम्मत कल यहीं पर आवश्यक सामग्री लाकर कर देंगे। सुल्तान जी ने कुण्डई गांव से दोपहर तक अपने साथ लाई सामग्री बेचकर पुनः भीण्डर के लिए निकल पड़े।

कुण्डई गांव से बाहर आने जंगल में एक नाले के पास उन्होनें अपना सामान रखकर दोपहर की नवाज अदा करने लगे इसी बीच लूट के इरादे से कुण्डई ठिकाने में कार्यरत्त कामगार वहां पहुचं गये व सुल्तान जी के सामान की जांच करने लगे जब उन्हें बाजु नहीं मिला तो उन्होनें सुल्तान जी को नवाज अदा करने के बाद बाज के बारे में पुछा इस पर उन्होनें कहा कि वह तो मैं यहां नहीं लाएं है।

कामगारों को विश्वास नहीं हुआ तो उन्होंनें सभी सामान बिखरते हुए सुल्तान जी बोहरा की गर्दन काट करके हत्या कर दी। जिनको भीण्डर लाकर हिजरी सन् 1168 की सव्वाल की दशवी तारीख को दफन कर दिया। उस समय बोहरा समुदाय के धर्मगुरू सैयदना हिपतुल्ला मोईयुदीन उज्जैन वाले आसिन थे। कुछ समय बाद भीण्डर में दरगाह बनाई गई और उर्स का पर्व शुरु हुआ, जो आज भी जारी है।

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