पेट्रोलपम्प मालिक निस्वार्थ भाव से पिछले 28 वर्षों से बना रहे हैं आंगी, दर्शन के लिए पहुंचते हैं सैकड़ों श्रद्धालु
Bhinder@VatanjayMedia
मेवाड़ का एक मात्र शिवालय भीण्डेश्वर महादेव मन्दिर, जहां सावन माह की तृतीया से एक माह तक महादेव का विशेष श्रृंगार किया जाता है। भाद्रपद चतुर्थी पर हवन-पूर्णाहुति के साथ सम्पन्न हुआ। ये श्रृंगार पिछले 28 वर्षों से एक पेट्रोल पम्प मालिक निस्वार्थ भाव से करते आ रहे है। नित्य होने वाली आंगी का समापन 61 ब्राह्मणों के द्वारा द्विआवृति करते हुए महारुद्र एवं हवन द्वारा किया गया।
जिसमें मुख्य यजमान दशरथ व्यास के सानिध्य में किया गया। जिसमें सवा दो क्विंटल मिठाई का वितरण एवं ब्राह्मण भोजन का आयोजन किया गया। साथ ही देश-प्रदेश में सुख शांति के लिए महामृत्युंजय की आहुतियां भी दी गई यह कार्यक्रम महादेव सत्संग मंडल के मुख्य आतिथ्य में संपन्न हुआ। इस दौरान ट्रस्ट के पूर्व अध्यक्ष घनश्याम लाल चौबीसा, कमलेश चौबीसा, प्रेमसिंह चौहान, दिलीप कोठारी, महेश चौबीसा, सत्यनारायण विजावत, ओम आमेटा, भगवतीलाल आमेटा आदि उपस्थित थे।
मेवाड़ का एकमात्र शिवालय, 200 वर्षों से चली आ रही हैं परम्परा
मेवाड़ का एकमात्र शिवालय जहां सावन माह में 30 दिनों तक महादेव का प्रतिदिन रूप बदला जाता है। यह परम्परा पिछले करीब 200 वर्षों से चली आ रही है। भीण्डेश्वर महादेव मन्दिर के ट्रस्ट संरक्षक घनश्याम लाल चौबीसा ने बताया कि प्रति वर्ष सावन माह में महादेव की विशेष अंग रचना की जाती है। जो प्रतिदिन अलग-अलग रूप में श्रृंगारित होती है।
इस दौरान मन्दिर परिसर में मेले जैसा माहौल रहता है। जिसमें भीण्डर एवं आसपास क्षेत्रों के सैकड़ों भक्तगण दर्शन करने आते है। विशेष आंगी में सप्ताह के प्रत्येक दिन के अनुसार महादेव के अलग-अलग रूपों का श्रृंगार होता है। जिसमें सोमवार से रविवार तक अलग-अलग रंग सहित महादेव की विभिन्न रूपों का श्रृंगार होता है।
पेट्रोलपम्प मालिक पिछले 28 वर्ष से कर रहे हैं श्रृंगार
भीण्डर में पेट्रोलपम्प मालिक दशरथ व्यास अपने पेटिंग और पिता से विरासत मिली, इस कला को भगवान के चरणों में समर्पित करते आ रहे है। यह पिछले 28 वर्षों से लगातार निस्वार्थ भाव से महादेव का एक माह तक विशेष श्रृंगार करते है। इसके लिए प्रतिदिन इनको करीब 4 से 5 घंटे श्रृंगार करने में व्यय करते हैं लेकिन इसके लिए कभी भी मन्दिर ट्रस्ट से कोई भी राशि नहीं लेते है।
यह सभी श्रृंगार अपने निजी खर्च से करते आ रहे है। दशरथ व्यास बताते हैं कि यह परम्परा उनके पिता के दादाजी से शुरू हुई थी, जो पीढ़ी दर पीढ़ी आगे बढ़ाते जा रहे है। पिता ने मुझे यह कला सिखाई और अब मैं अपने पुत्र को यह सीखा रहा हूं। दशरथ व्यास ने 30 दिनों में महादेव के प्रतिदिन नये रूप धराते है।
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