भीण्डेश्वर महादेव – पहली बार 30 के बजाएं 47 दिनों तक होगी सावन आंगी

भीण्डेश्वर महादेव - पहली बार 30 के बजाएं 47 दिनों तक होगी सावन आंगी

भीण्डेश्वर महादेव में आंगी – पहली बार 30 के बजाएं 47 दिनों तक होगी सावन आंगी

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मेवाड़ का एकमात्र शिवालय, जहां होती हैं सावन में महादेव की आंगी

भीण्डेश्वर महादेव – 47 दिनों तक महादेव का प्रतिदिन विशेष श्रृंगार, 200 वर्षों से चली आ रही हैं परम्परा

Bhinder@MahendraSingh

मेवाड़ का एकमात्र शिवालय जहां सावन माह में महादेव का प्रतिदिन रूप बदला जाता है। यह परम्परा पिछले करीब 200 वर्षों से चली आ रही है। इस वर्ष अधिकमास होने से पहली बार 30 के बजाएं 47 दिनों तक सावन आंगी आयोजित होगी। उदयपुर जिले के भीण्डर नगर स्थित प्रसिद्ध भीण्डेश्वर महादेव मन्दिर में 15 जुलाई शनिवार से सावन आंगी शुरू होगी, जो 30 अगस्त रक्षाबंधन तक जारी रहेगी।

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47 दिनों तक आयोजित होगी आंगी

भीण्डेश्वर महादेव मन्दिर ट्रस्ट अध्यक्ष उदयप्रकाश आमेटा ने बताया कि प्रति वर्ष सावन माह में महादेव की विशेष अंग रचना आंगी की जाती है। जो प्रतिदिन अलग-अलग रूप में श्रृंगारित होती है। इस दौरान मन्दिर परिसर में मेले जैसा माहौल रहता है। जिसमें भीण्डर एवं आसपास क्षेत्रों के सैकड़ों भक्तगण दर्शन करने आते है।

विशेष आंगी में सप्ताह के प्रत्येक दिन के अनुसार महादेव के अलग-अलग रूपों का श्रृंगार होता है। जिसमें सोमवार से रविवार तक अलग-अलग रंग सहित महादेव की विभिन्न रूपों का श्रृंगार होता है। इस बार पहली 30 के बजाएं 47 दिनों तक आंगी का आयोजन होगा।

भिण्डी गाय से भीण्डेश्वर महादेव का नामकरण

500 वर्ष पूर्व भीण्डर नगर यहां से 2 किलोमीटर दूर पश्चिम में बीजासर माता की पहाड़ियों पर बसा हुआ था। वहां राठौड़ राजपुतों का शासन हुआ करता था। उस समय जुनी भीण्डर के निवासियों के मवेशी इस स्थान पर भंयकर जंगल एवं नदी होने के कारण चरने के लिए आते थे। मवेशियों में एक गाय मुड़े हुये सींग वाली थी जिसे भिण्डी नाम से पुकारा जाता था।

यह भिण्डी गाय एक स्थान पर आकर रूकती और उसके स्थन से दुध की धारा स्वत ही फूट पड़ती थी। गाय के मालिक जब सांयकाल दुध निकालना चाहता था तो उसे दुध ही नहीं मिलता था। एक दिन गाय का मालिक दोपहर में गाय के पीछे-पीछे निगरानी के लिये यहां आया तो देखा झाड़ियों के पीछे गाय की स्वत दूध धारा निकल रही है। उस स्थान की खुदाई की तो वहां शिवलिंग निकला। जिसकी स्थापना कर यह स्थान भीण्ेडश्वर महादेव के नाम से जाना जाने लगा।

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